सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आपराधिक मामलों में संदेह, चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, ठोस सबूत का विकल्प नहीं हो सकता। अदालत ने उत्तराखंड में वर्ष 2007 में 10 वर्षीय बालक की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए तीन आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष की कहानी में “काफी गंभीर खामियां” थीं और प्रस्तुत साक्ष्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला को पूर्ण नहीं कर सके।
न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने तीनों आरोपियों की अपील स्वीकार करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के नवंबर 2017 के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें उनकी सजा और दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था।
“संदेहास्पद गवाही के आधार पर वैज्ञानिक जांचों को नज़रअंदाज़ कर दोषसिद्धि करना, संदेह को प्रमाण के स्थान पर रखना है। सुप्रीम कोर्ट बार-बार यह कह चुका है कि संदेह, चाहे कितना