संपत्ति कानून पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दशकों की निष्क्रियता के बाद दायर किया गया मालिकाना हक की घोषणा का मुकदमा, परिसीमा (limitation) के कानून द्वारा वर्जित है। न्यायालय ने इस मामले में ‘रचनात्मक सूचना’ (constructive notice) के सिद्धांत को लागू किया। न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसलों को रद्द करते हुए, एक महिला द्वारा मौखिक उपहार (हिबा) और विरासत के आधार पर 24 एकड़ भूमि पर किए गए दावे को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि 23 वर्षों से अधिक समय तक अपने अधिकारों का दावा करने में वादी की विफलता का अर्थ है कि उसे संपत्ति से जुड़े सार्वजनिक लेनदेन और प्रतिकूल दावों की रचनात्मक जानकारी थी, जिससे मुकदमा करने का उसका अधिकार समाप्त हो गया।

मामले की पृष्ठभ

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