सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत किसी आरोपी को गिरफ्तारी के समय लिखित में गिरफ्तारी के आधार प्रदान करना एक अनिवार्य आवश्यकता है। रिमांड कार्यवाही के दौरान अदालत द्वारा इन आधारों की मौखिक व्याख्या इस अनिवार्य शर्त का विकल्प नहीं हो सकती। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की खंडपीठ ने अपीलकर्ताओं की गिरफ्तारी और रिमांड को रद्द करते हुए यह निर्णय सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता, अहमद मंसूर और अन्य, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धाराओं 153A, 153B, 120-B, और 34 के साथ-साथ UAPA की धाराओं 13 और 18 के तहत आरोपों का सामना कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या गिरफ्तारी के समय अपीलकर्ताओं को लिखित रूप में आधार प्रदान करने मे

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