केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी का पंजीकरण कराना चाहता है, तो उसकी पहली पत्नी को भी सुने जाने का अवसर दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति पी वी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि “ऐसी परिस्थितियों में धर्म गौण है और संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि जब दूसरी शादी के पंजीकरण का प्रश्न आता है, तो प्रचलित धार्मिक या पारंपरिक कानून नहीं, बल्कि देश का कानून लागू होगा।
न्यायाधीश ने यह भी कहा, “मुझे नहीं लगता कि पवित्र कुरान या मुस्लिम कानून किसी पुरुष को यह अनुमति देता है कि वह अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते और विवाह संबंध जारी रहते किसी दूसरी महिला के साथ विवाहेतर संबंध रखे, और वह भी पहली पत्नी की जानकारी के बिना।”
यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें एक व्यक्ति और उसकी दूसरी पत्नी ने राज्य सरकार को निर्देश देने की

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