दिल्ली हाईकोर्ट ने 6 नवंबर, 2025 के अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में यह कानूनी स्थिति स्पष्ट की है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (NI) एक्ट की धारा 138 के तहत एक शिकायतकर्ता को दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 2(wa) के तहत ‘पीड़ित’ (victim) माना जाएगा।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसके परिणामस्वरूप, चेक बाउंस मामलों में बरी होने के आदेश के खिलाफ कोई भी अपील, हाईकोर्ट में Cr.P.C. की धारा 378(4) के तहत विशेष अनुमति याचिका (special leave petition) के बजाय, Cr.P.C. की धारा 372 के परंतुक के तहत सीधे सत्र न्यायालय (Sessions Court) में दायर की जाएगी।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले का हवाला देते हुए, अपील करने की अनुमति मांगने वाली एक याचिका को वापस लेने की अनुमति दे दी और अपील को क्षेत्राधिकार रखने वाले सत्र न्यायालय में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
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