दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि वादी ने घोषणात्मक डिक्री (Declaratory Decree) के साथ-साथ स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा (Injunction) की आनुषांगिक राहत भी मांगी है, तो विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम (Specific Relief Act – SRA), 1963 की धारा 34 का परंतु (Proviso) वाद को बाधित नहीं करता है।

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की पीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए प्रतिवादी (Defendant) द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश VII नियम 11 के तहत दायर वाद पत्र (Plaint) को खारिज करने की अर्जी को नामंजूर कर दिया। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि यदि कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज का निष्पादक (Executant) नहीं है, तो उसे उस दस्तावेज को रद्द (Cancellation) कराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि केवल उसे अमान्य घोषित करवाना ही पर्याप्त है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला डॉ. सरोज बहल (वादी) द्वारा दायर एक दीवानी मुक

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