हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामले में एक सख्त और महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायत तब तक मान्य नहीं होगी, जब तक कि शिकायतकर्ता यह साबित करने के लिए ठोस दस्तावेजी सबूत पेश नहीं करता कि वह चेक पर अंकित फर्म का प्रोपराइटर (मालिक) है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि केवल शपथ पत्र (Affidavit) में खुद को मालिक बता देना पर्याप्त नहीं है। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समय-सीमा से बाधित (Time-Barred) कर्ज के लिए जारी किया गया चेक कानूनी रूप से वसूली योग्य ऋण (Legally Enforceable Debt) की श्रेणी में नहीं आता है।

जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने शिकायतकर्ता अश्वनी कुमार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए आरोपी राज कुमार को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया।

मामले की पृष्ठभूमि

शिकायतकर्ता ने खुद को

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