सुप्रीम कोर्ट ने 1988 के बिहार भूमि विवाद से जुड़े एक दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराए गए दस व्यक्तियों को बरी कर दिया है। अदालत ने “दागी जांच” और “पूरी तरह से उलझे हुए” सबूतों का हवाला देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपना मामला साबित करने में विफल रहा। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने निचली अदालत और पटना हाईकोर्ट के दोषसिद्धि के फैसले को पलटते हुए इस बात पर जोर दिया कि जब बड़ी भीड़ से जुड़े मामलों में सामान्य आरोपों के आधार पर दोषसिद्धि की जा रही हो तो अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

अदालत ने पाया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) काफी विचार-विमर्श के बाद दर्ज की गई थी और इसे पहली सूचना नहीं माना जा सकता, जिससे पूरी जांच अविश्वसनीय हो गई। इसके अलावा, घायल चश्मदीद गवाहों के बयान भी भौतिक अंतर्विरोधों से भरे हुए थे और मेडिकल सबूतों

See Full Page