सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जुड़े 35 साल पुराने हत्या के एक मामले में चार दोषियों को बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए दो “कथित प्रत्यक्षदर्शियों” के बयान विरोधाभासों और असंगतियों से भरे थे, जिसके कारण दोषसिद्धि को कायम रखना सुरक्षित नहीं था।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इन चारों की सजा को रद्द करते हुए कहा कि अभियोजन की कहानी विश्वसनीय नहीं है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी व्यापक शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन तीन सह-अभियुक्तों को भी राहत दी जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर नहीं की थी।

यह मामला सितंबर 1990 का है। इंदौर में दर्ज एक एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि दस लोग एक अस्थायी झोपड़ी को तोड़ रहे थे। जब सूचना देने वाले का बेटा बीच-बचाव के लिए आगे आया तो उस पर हमला कर दिया गया। घा

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