दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पति को ‘क्रूरता’ (Cruelty) के आधार पर तलाक की मंजूरी दे दी है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आरोपों को साबित कर दिया है, तो केवल प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा लगाए गए अप्रमाणित आरोपों के आधार पर “Clean Hands” (साफ हाथों) के सिद्धांत का हवाला देकर उसे राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट के समक्ष मुख्य सवाल यह था कि क्या फैमिली कोर्ट ने क्रूरता को न मानकर और ‘Clean Hands’ के सिद्धांत का उपयोग करके पति की याचिका को खारिज कर सही किया था। हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 23(1)(a), जिसमें ‘Clean Hands’ का सिद्धांत निहित है, का उद्देश्य किसी पक्ष को अपनी ही गलती का लाभ उठाने से रोकना है। हालांकि, इसका मतलब यह

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