मध्यस्थता कार्यवाही (Arbitration Proceedings) की समाप्ति और उसके खिलाफ उपलब्ध कानूनी उपायों को लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि फीस का भुगतान न करने के कारण मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (“अधिनियम, 1996”) की धारा 38 के तहत कार्यवाही को समाप्त करने वाला आदेश, अनिवार्य रूप से धारा 32(2)(c) के तहत दिया गया आदेश माना जाएगा।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने फैसला सुनाया कि ऐसी समाप्ति से असंतुष्ट पक्ष के लिए उचित उपाय यह है कि वह पहले आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष ‘रिकॉल एप्लिकेशन’ (वापसी की अर्जी) दायर करे। यदि ट्रिब्यूनल इसे खारिज कर देता है, तो पक्षकार अधिनियम की धारा 14(2) के तहत कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि मध्यस्थता का दूसरा दौर शुरू करने के लिए धारा 11 के तहत नई य

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