कलकत्ता हाईकोर्ट ने परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act), 1881 की धारा 138 के तहत चल रही कार्यवाही में एक निर्माण कंपनी और उसके निदेशकों की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि बिना किसी पुख्ता या पुष्टि करने वाले साक्ष्य (corroborative evidence) के केवल दबाव (coercion) का “कोरा आरोप” (bald allegation) लगाना, कानून के तहत तय वैधानिक धारणा (statutory presumption) को खारिज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
19 नवंबर, 2025 को दिए गए फैसले में, न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता ने मा क्रिंग कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (Ma Kreeng Construction Pvt. Ltd.) और उसके निदेशकों द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका (Criminal Revisional Application) को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें निदेशकों को साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी और भारी मुआवजे

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