पटना हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 2015 के तहत आरोपी एक अपीलकर्ता को अग्रिम जमानत दे दी है। न्यायालय ने पाया कि पक्षकारों के बीच का विवाद “पूरी तरह से सिविल प्रकृति” (Purely civil in nature) का प्रतीत होता है और जाति सूचक शब्दों के इस्तेमाल के आरोप “सार्वजनिक दृष्टि” (Public view) में घटित नहीं हुए। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। कोर्ट ने दोहराया कि यदि प्रथम दृष्टया (Prima facie) मामला नहीं बनता है, तो एससी/एसटी एक्ट की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला लाल बाबू यादव उर्फ लाल किशोर यादव बनाम बिहार राज्य (Criminal Appeal (SJ) No. 1108 of 2025) से संबंधित है, जो भोजपुर एससी/एसटी पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिक

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