सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब मृत्युकालिक कथन (Dying Declaration) स्वयं “संदिग्ध” हो और उसमें कई “महत्वपूर्ण खामियां और कमियां” हों, तो केवल उसके आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने तरुण शर्मा बनाम हरियाणा राज्य मामले में निचली अदालत और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसलों को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के मामले में, विशेषकर पीड़ित का बयान दर्ज करने की प्रक्रिया में, महत्वपूर्ण चूकों को उजागर किया।

कोर्ट ने इस बात पर भी गंभीर आपत्ति जताई जिस तरह से हाईकोर्ट ने अपील की सुनवाई की थी। कोर्ट ने कहा कि न्याय मित्र (Amicus Curiae) नियुक्त करना और उसी दिन मामले की सुनवाई कर देना “प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व के अधिकार को

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